पिता सच्चा हीरो
पिता सच्चा हीरो
कठोर है वो, पर 'दूजा ''कोमल'' कोई नहीं,
गरीब है, बस 'माँ' समान, "दूजा" कोई नहीं।
कहता रहता, खुश हूं मैं अपनी तकदीर से,
रोता है अकेले, पर ना दिखते "अश्रु" कहीं।
वो रियल हीरो है, हर मुश्किल से लड़ता है,
क्या कहूँ? 'पिता' जैसा दुनिया में कोई नहीं।
आज वो दुःखी है, घर बिखरने की चिंता में,
वक्त के साथ उम्र ढली, फिर भी लाचार नहीं।
अरसे बीत जाते हैं, जिंदगी सफल बनाने में,
कंधों पर बोझ है परिवार का, पर परेशां नहीं।
झलकती धूप में, दिन-रात वो मेहनत करता,
खुश है, पर जिंदगी से, एक भी शिकायत नहीं।
