पिता प्रेम
पिता प्रेम
अयोध्या में राज करते थे दशरथ बलकारी ।
एक बार उनके महल में मची धूम भारी ।।
कौशल्या के गर्भ से श्री राम ने जन्म पाया ।
नारायण को देख देवों ने गुणगान गाया ।।
सुमित्रा के गर्भ से आये लखन प्यारे ।
साथ मे आए शत्रुघ्न जिनसे सारे शत्रु हारे ।।
कैकयी के गर्भ से आए भरत तपस्वी ।
हर्षित हुए दशरथ देख बालक तेजस्वी ।।
अब तो बालक भी बड़े हो गए ।
माता - पिता की सेवा में वो खो गए ।।
कभी आपस मे वो नहीं झगड़ते ।
माता - पिता को एक सा वो स्नेह करते ।।
श्री राम की वीरता सुनकर दशरथ खुश होते है ।
राम का राज्याभिषेक करने की बात वो सोचते है ।।
घोषणा सुनकर प्रजावसी की खुशी का न रहा ठिकाना ।
हर कोई ऐसे खुश हुआ जैसे घर में भर गया हो खजाना ।।
दासी मंथरा के मन में भड़की ईर्ष्या की ज्वाला ।
कैकयी को उसने राम के विरुद्ध भड़का डाला ।।
पुराने वचनों की याद दिलाई ।
अब भड़की कैकयी माई ।।
कैकयी ने मांगा राम के लिए १४ वर्ष का वनवास ।
और अवध राज्य हो भरत के पास ।।
सुनकर कैकयी की बारे दशरथ घबराते है ।
फिर वो जमीन पर मूर्छित हो जाते है । ।
दशरथ का देख हाल कैकयी को दया न आए ।
अपने ही हाथों कैकयी अपना सिंदूर सुखाए ।।
तभी आर्यसुमन्त वहां आते है ।
वो राम को फिर बुलाते है ।
पिता की ऐसी दशा देख राम कैकयी से कहते है ।
पिता क्यों आंखों से आंसू बहाते है ?
कैकयी बोली मैंने तो दो वर मांग लिए ।
पर तुम्हारे पिता नहीं दे पाते तुम्हारे लिए । ।
मैंने तो मांगा तुम्हारे लिए वर्षों का वनवास ।
और अवध राज हो भरत के पास ।।
बाते सुनकर राम हर्षाते है ।
और वो कहते है ।।
अपने पिता का मैं वचन निभाऊंगा ।
पिता के खातिर मैं वन में जाऊंगा ।।
तब राम सिया व लखन सहित वन जाते है ।
अपने पिता का वचन राम निभाते है ।।
जो पिता के लिए वन में जाते है ।
वो ही राम कहलाते है ।।
श्री राम के पिता प्रेम का वर्णन नहीं होता ।
मैं तो श्री राम के चरणों में हों खोता ।
जय श्री राम
