पिता की छवि पाना चाहे
पिता की छवि पाना चाहे
पिता की छबी पाना चाहे,
विश्वास जो उसका निभाना चाहे,
प्यार तो उस बैरागी की रचना है
जो हर रिश्ता संभालना चाहे।
पिता जैसा प्यार तो कोई न कर पाए,
पर उस प्यार की परिकल्पना में वो जीना चाहे,
हा छोड़ना तो है ये महकता बगियन,
एक उपवन सजाने के लिए, पर
क्या वो पौधे भी पानी सींचना चाहे।
माँ की सीख और पिता के
प्यार ने सींचा ये चरित्र,
अब पवित्र करे हर वो व्यक्तित्व
पिता की छवि पाना चाहे।
