पिता और पति में फर्क
पिता और पति में फर्क
पिता की नजर में जहां होती,
उसकी पुत्री राजकुमारी,
पति की नजर में वोह मात्र,
होती सेविका जो करे उसकी चाकरी।
पिता उठाता अपनी लाडली के नखरे,
पति एहसान उठाता है पत्नी पर सारे।
पिता नहीं देख सकता अपनी पुत्री की
आंखों में एक भी आंसू।
उसकी एक एक मुस्कान पर बलिहारी जाता है।
पति के लिए पत्नी के आंसू एक मुसीबत,
जो बात बात पर फब्तियां कसता है।
मुस्कान को उसकी षड्यंत्र समझता है
पिता के राज में पुत्री सदा सुख,चैन
और आराम से रहती।
पति के राज में दुख, क्लेश और कष्ट उठाती।
पिता का एक ही अरमान उसकी बेटी,
सफलता की ऊंचाइयां छुए,पूरी आजादी से,
पंख फैलाकर उड़े।
और पति की स्वार्थपरता पत्नी। के कदमों को,
रोके,उसे कर्तव्यों की जंजीरों में बांधे।
पति की हसरत केवल वही आजादी से उड़े।
इसीलिए पिता के प्रति पुत्री को होता अगाध स्नेह,
और आदर,पिता भी करता पुत्री पर जान निसार,
मगर पति के साथ पत्नी का होता मात्र समझौता।
ना ही आगाह प्रेम और न ही अपनापन।
पति देता पत्नी को देता नीरस और उबायू जीवन।
इसीलिए पुत्री के लिए पिता होता,
बहुमूल्य रत्न समान कीमती।
और पति के लिए ...कोई भाव नहीं।
क्योंकि पिता और पति में होता है
जमीन आसमान सा अंतर।