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Shivangi Tewari

Drama

5.0  

Shivangi Tewari

Drama

पीली आज़ादी

पीली आज़ादी

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एक नीला आकाश है,

ख़ामोश हवा भी धीमी से बह रही है,

बिन कहे, बिन सुने,

न तुझसे वास्ता है इसका, न मुझसे

नारंगी और गुलाबी ख्वाहिशों से लिपटी हुई

सौंदर्य दीदार की सिसकी लेती हुई

पीली आज़ादी के इंतज़ार में गुमनाम है कहीं,


हम नहीं देख पाएंगे इस ओझल शीशे से ,

उस पे गहरे अफसाने की धुन सवार है,

फुआर है पुकार,

मानो जैसे गुलाबी लबों की तृप्त महफ़िल सजी हो बाग़ में कहीं,

इस राह पे चलते चलते सफ़ेद बादल से घिरा हूँ,

इस नश्वर जीवन में ज़मीन से इश्क़ हो चला है जनाब ,


इन फौलादी कन्धों को उसके क़दमो तक झुका दिया है,

अब तो किनारा भी दूर नहीं लगता,

सुख दुख का पन्ना गीला होके सिकुड़ गया है,

हम ढाई अक्षर में ही संतुष्ट हैं


शोर की तितली खमोशी से पलती थी कभी

चांदी से सराबोर यह जीवन का प्याला

इन्तेहाँ के मौसम में शायरी करता रहता है,

इसकी प्यास नहीं बुझती,

बुझकर भी नहीं बुझती,


रूबरू हो रही है ज़िन्दगी मुझसे या में ज़िन्दगी से

दो पल का कारवां और चन्द लम्हें,

शोर में भी सुलगता एहसास,

भीड़ में भी न छुपता वो राज़,

मिट्टी की भूख, चिट्ठी गयी सूख,


तेरी मोहब्बत का धुआँ,

धुन्दली हो रही दुनिया ,

इश्क़ के पहलू मिल रहे हैं,

बहुत से दीवाने गुज़र रहे हैं,

पर मैं तो अब भी यहाँ हूँ,

पीली आज़ादी के संगीन संगीत में,

दिल और दुनिया के बीच जो सुरंग निकलती है,

सपनों की सर्द रातें,


अमावस की अधूरी बातें,

पीछे छोड़ आयी हूँ,

देर लगी, पर अब चली आयी हूँ, लौट आयी हूँ,

पीली रौशनी की इबादत लिए


पीली स्याही की चाहत लिए

चली आयी हूँ

पीली आज़ादी की भीगती शाम लिए

पीली आज़ादी की भीगती शाम लिए...।





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