फूल पर लगी धूल
फूल पर लगी धूल
फूल पर लगी हुई धूल को हटाना है
दिल में लगे हुए शूल को मिटाना है
तेरी खुश्बू आज मयखाने में बंद है,
मय के नशे को तुझे आज भूलाना है
जितना तू रोया है ज़माने के सामने
उतना अक्स तोड़ा है आईने के सामने
मुरझाये हुए फूल को फिर से खिलाना है
फूल पर लगी हुई धूल को हटाना है
सब तेरा उपहास कर रहे है,
तू फिर भी मौन है
क्या तेरा अस्तित्व गौण है
उठ खड़ा हो जा साखी,
तुझे अपने अपमान को,
आज खूब रुलाना है
इस फूल को समझ रहे जो भूल हैं
उनके ही केश पकड़कर
तुझे आज मंज़िल तक जाना है
फूल पर लगी हुई धूल को हटाना है
