गृहिणी
गृहिणी
थोड़ी मीठी थोड़ी चुलबुल थोड़ी दिलकश, थोड़ी मजाकिया
वाद्य यंत्रों सी बजती
अपने दिल का व्यथा बताती
फूलों सी मुस्कुराती
निष्कपट, निश्छल साफ दिल वाली
महज साधारण सी गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
जुबा पर सदा मिश्री घुलती
बुहत सहज, सरल शब्दों की खुली किताब हूँ मैं।
जीवन की कठिन परिस्थितियों में हिम्मत के पेज लड़ती
खुली आसमान में उड़ती पतंग हूँ मैं।
गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
सरल सहज जीवन है मेरा
ममता की मुरत, निस्स्वार्थ प्रेम से सरोबार,
अपने बच्चों पर दया, करुणा लुटा .
बच्चों की चमकती आखों में नए सपने संजोए
उन्हें सही, मार्ग पर चलने की सीख देती हूँ मैं
ऊपर से नारियल की तरह कठोर पर अंदर से नम्रता रखती हूँ मैं।
एक शीतल बयार हूँ मैं।
गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
पति की हमसफर, जीवन संगिनी कहलाती में
उन्हें जीवन के रणक्षेत्र में चुनौती से लड़ने की हिम्मत देती हूँ मैं
पति का सच्चा साथ, एक सलाहकार उनकी अर्धांगिनी
और बूढ़े कदमों (सास, ससुर) का अवलंबन हूँ मैं।
गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
रोज सुबह भेजकर सबको अपने गंतव्य की ओर
फिर बिखरा घर समेट
स्वयं भूखे रहकर पहले परिवार को पसंद का खाना खिलाकर
उनके थके चेहरे पर ताजगी लाती हूँ मैं।
कपड़ों को उजला कर साफ-सफाई कर
अपनी श्रम की बूँदों से घर का भाग्य चमकाती हूँ मैं।
दूसरों की मदद करने की पहले सोचती,
अपनों की भलाई की सोचती अपने लिए थोड़ी लापरवाह हूँ मैं।
जीवन के विषम परिस्थितियों के जटिल समीकरण को
सरल सूत्र से हल करती हूँ मैं।
गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
चंचल मन हज़ारों बाते करती
कभी गंभीरता का लबादा तान कभी
गुमसुम सी रहती कभी बादलों सी बरसती
क़ीमती गहनों से नहीं मधुर मुस्कान से सजती संवरती
अपने दर्द को छुपा लेती कभी एकांत में आंसू बहा लेती
गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
कोई उत्सव हो होली, दिवाली पर नए मिष्ठान्न बनाती,
रंगोली बनाती, घर को फूलों, पतों के तोरण से सजाती
कभी सभी के दिल की उम्मीद बन जाती हूँ मैं
कभी स्थिर नहीं रहती जीवन की धुरी पर पृथ्वी सी घूमती रहती
बार बार टूटती, बिखरती हू फिर भी खड़ी होकर अपने कल को संवारती हूँ मैं।
अपने आसुओं को पोछते,माँ, बहन, पत्नी,
भाभी हर रिश्ता बखूबी निभाती
अपने दर्द को छुपाती हूँ पर सम्मान को चोट पहुंचे तो
भला कुछ ना कहूं अपने आसुओं से बहुत कुछ कह जाती हूँ मैं
गृहिणी कहलाती हूँ मैं।
सभी गृहिणी को समर्पित