कलम और पिता
कलम और पिता
मेरी कलम आज उदास लगने लगी है
पिता का दर्द लिखते लिखते रोने लगी है
रोने लगी है मां की हर पुरानी बात पर
मां की बिंदी पिता का कुर्ता लिखते लिखते रोने लगी है।
मेरी कलम के अंदर
पिता के कर्ज की सहाई है
कैसे ना लिखूं आज फिर
मां बापू की याद आई है।
मेरी कलम ने पिछले जन्म
बड़ा उपकार किया होगा
जिसने शब्दों में पिता को
उतार दिया होगा।
धन्य है तू ए कलम
दो उंगली में कैद रहकर
पूरी कहानी लिखती है
कभी जेब में कभी
डब्बे में छुपती है।
तेरे दर्द को बयां मैं करूंगा!
तू मत रो कलम तेरा नाम मैं करूंगा!!
लिखूंगा तुझ से
एक नया इतिहास
तुझे ही आजाद मैं करूंगा!!
मेरे पिता की राख है
यादों से अलग कुछ नहीं पास है!!
मेरे गांव की मिट्टी तेरे
कण कण में समाई!
आज फिर उस भगवान की याद आई है!!
जो अकेला कोने में रो दे!
जो कर्ज उठाकर अपना सुख खो दे!!
जो कुर्ता फटा पहने!
जो चप्पल टूटी पहने!!
जिसने उम्र भर बोझ उठाया हो!
वो रोया नहीं मेरे समाने
अपना फर्ज निभाया हो!!
उन का दोष नहीं कुछ था!
बचपन में वह बहुत खुश था!!
जिस माटी में पड़ी ये राख है!
कैसे बताऊं वो मेरा बाप ह!!
पिता से दिन पिता से शाम मेरी है!
पिता से मैं पिता से जान मेरी है!
पिता वो आसमान है सर की छत मेरी है!
पिता तो पिता है पिता से हर ख्वाहिश मेरी है!
पिता से मेरा वजूद
पिता से घर की सूरत मेरी है!
पिता से कंगन झुमके मंगलसूत्र
पिता से मां मेरी है!!
मां की पीड़ा केवल मां ही जानती है
मां के जज्बात को केवल मां ही पहचानती है!
मां से अलग कोई मां बन नहीं सकता
मां ही बच्चों को अपने प्राण मानती हैं!!
मानती है वो नौ महीने की तपस्या!
जानती हैं वो इस को कठिन परीक्षा!!
ईश्वर का भी खेल निराला है!
जिस को सुरक्षित मां ने गर्भ में पाला है!!
मां की ममता का क्या मोल लगाओगे!
दस दिन क्या बोझा उठा कर दिखाओगे!!
नौ महीने मां हमें गर्भ में रखती हैं!
हमारे जन्म के वक़्त मां बहुत तड़फती है!!
कितना दुःख हम मां को देते हैं!
कैसे मां के बिना हम जी लेते हैं!!
