फुलवारी
फुलवारी
कुछ तो कहती है ये फुलवारी,
शायद सुन हम ही नहीं पाते,
सुदरता इस प्यारी प्रकृति की,
शायद आत्मसात नहीं कर पाते।
कुछ पल के लिए भी हमने,
मौन को गुनगुनाना न सीखा,
प्रेम के इस अतुल्य दीप का,
प्रकाश न पहचानना सीखा।
जीने की जो कला सिखाते,
वह यह प्यारे पुष्प ही तो हैं।
कंटक में जो मुस्कुराना बताते,
वह मित्र ये पुष्प ही तो हैं।।
काश!एक पल थाम कदम हम,
मौन में इनसे भी बतियाते।
जीवन के कुछ प्यारे दर्शन,
हम इन पुष्पों में पा जाते।।
