पहरे
पहरे
तुम्हें जिस में ज़माने लग गए....... हैं
वो हम लम्हों में पाने लग गए ......हैं
सभी महफ़िल से जाने लग गए... हैं
ये क्या ग़ज़लें सुनाने लग गए...... हैं
किसी की इक हँसी के वास्ते ....हम
हज़ारों दिल दुखाने लग गए........ हैं
कोई पूछे तो उनसे क्या हुआ .....है
वो क्यूं नजरें चुराने लग गए ......हैं
सो तुमसे बात के चक्कर में ..जाना
कई नम्बर पुराने लग गए ..........हैं
बिछड़ते वक्त रोना चाहिए .......था
मगर हम मुस्कुराने लग गए....... हैं
तिरे पहरे हैं सब नाकाम .....दुनिया
वो ख्वाबों में आने लग गए........ हैं

