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पहला प्यार

पहला प्यार

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पहला प्यार

जैसे ठंडी बयार

नयनों में सागर

भावों की गागर।


रहता इंतज़ार

घर जैसे बेकार

एक झलक को बेकरार

मुलाकात में इज़हार।


फूलों का तोहफा

कभी हँसी ठिठोला

प्रीतम बाँहें हिंडोला

आखों में गहरा नशा।


हर दुःख सहने को राज़ी

जान की भी लगती बाज़ी

जुदाई पहले प्यार की ताज़ी

न दे खुदा किसी को सज़ा ऐसी।


पहला प्यार जैसे

बूंदों की बौछार

पहला प्यार जैसे

सैकड़ों दीपहार।


इसकी खुशबू

भुलाए न भूले

काहे इंसान तू

फिक्रमंद घूमे।


बना लो उसे अपना

गर कशिश बाकी है

बसा लो लकीरों में

अगर हौसला बाकी है।


ये ज़ालिम दुनिया तो कहेगी

भूलने को आशिकी

तुम हो जाओ फना

उसमें हो अगर बेकली।।



स्वपनिल वैश्य 'स्वप्न'


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