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Swapnil Vaish

Romance

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Swapnil Vaish

Romance

वो हीरे की अंगूठी

वो हीरे की अंगूठी

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याद है आज भी वो तेरी पहली नज़र

गुलाबी सर्दी में लाली ले वो सहर

ठिठुरते हाथों से वो तेरा ग्लास पकड़ना

कॉलेज बेल बजते ही गर्म चाय को बस चूम जाना

हमें तुम्हें ताकने के अलावा काम ही कहाँ था

तुम्हारी झूठी चाय का स्वाद मदमस्त करता था


प्रेम तो सच्चा था मेरा पर एक तरफा आशिकी का क्या मोल

जब प्यार जताने को चाहिये होता भौतिकता का तोल

मेरी आँखों के सामने रमेश ने तुम्हें हीरे की अंगूठी पहनाई

मेरी जान जैसे उस हीरे में तब से कैद हुई छटपटाई

हम तो तब भी ग़रीब थे, आज भी फकीर हैं

भूल तो जाते हैं वो काटों भरी जुदाई की ज़िंदगी

मुश्किल है पर उस दर्द को भूलना जो बने अपनी जायदाद सगी



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