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प्रियंका शर्मा

Abstract

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प्रियंका शर्मा

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फिर वही सब.....

फिर वही सब.....

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फिर वही सब लेकिन आखिर कब तक

फिर वही मोमबत्तियां जलेगी,

फिर वही प्रर्दशन होंगे

जनता का आक्रोश फूटेगा,

सरकार का मौन टूटेगा,


जब तक नहीं है कोई दूसरा विषय,

तब तलक इसके खिलाफ

संसद में आवाज उठाई जाएगी,

देश के ठेकेदारों द्वारा हर मेज थपथपाई जाएगी,


जरा सोचो, उसकी चीखों ने

क्या कुछ नहीं कहा होगा

व्यवस्था को दुत्कारा नहीं होगा,

या फिर माँ को पुकारा नहीं होगा


जरूर कोसा होगा उसने समाज का हर नियम,

जहाँ नीयत खराब है पुरुष की

और घूंघट करे स्त्री

निगाहें खराब हो पुरुष की पर नजर झुकाएं स्त्री


उस रात शायद कह गयी होंगी वो चीखें ये बात,

कन्या पूजन के रूप में मत

तुम मेरा नाटकीय सम्मान करो

मैं भी एक इंसान हूँ,

जरा इसका तो कुछ मान करो


जरुरत नहीं है सुरक्षा का

नया संविधान गढने की,

जरुरत है तो बस उस 'कागजी कानून' को

धरातल पर उतरने की

अन्यथा कल फिर यही दोहराया जायेगा


किसी नये कस्बे, किसी नये शहर में,

किसी नये 'प्राण' के साथ

फिर व्यवस्थाएं मौन रह जाएंगी,

और जो कानून होगा भी,

वो सिमटा रहेगा सिर्फ पन्नों तलक,

फिर वही सब लेकिन आखिर कब तक ?


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