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Dr Baman Chandra Dixit

Abstract Inspirational

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Dr Baman Chandra Dixit

Abstract Inspirational

फिर भी ज़िंदगी

फिर भी ज़िंदगी

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जलता हुआ अंगारा हूँ मैं 

मत छिड़को मुझ पे पानी

यूँ मरते मरते जीना भी 

होती क्या कोई जिंदगानी।।


कभी प्रतारणा कभी प्रताड़ना

बातों बातों तीर तेरी उलाहना

तड़पती सांस आस सुकून की

अध लिखी सी कोई कहानी।।


ज़िंदगी की ज़िक़्र कोई दांव जैसे

बातों बातों फ़िक्र प्रीत भाव वैसे

वार मधुर मधुर जानलेवा मगर

मधु-मटका जहरीला पानी।।


टीस है बहुत ज़ख़्म तले मगर

सहलाने की चाह जाग जाये अगर

बे फुरसत होड़ दौड़ दहाड़ बीच

कौन देखे आंखों में पानी।।


बड़े अदब से आदतों में शामिल

तकलीफों की तज़ुर्बा कर हासिल

दर्द और ख़ुशी के गलियारों बीच

अब तो बसा लिया बसेरा अपना।।

शायद ऐसी होती ज़िंदगानी।।



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