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Shashikant Das

Abstract Drama Tragedy

4.5  

Shashikant Das

Abstract Drama Tragedy

फिर भी इस जग में !

फिर भी इस जग में !

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देखूँ जभी झरोके के बहार, 

दिखे मुझे फला फूला संसार

लगे बहुत है जीने के असार, 

फिर भी लगे क्यों सभी बेकार।


जीने की लगी हुई है यहाँ प्रतिस्पर्दा, 

जरूरतों के लिए ला रहे है आपदा

चंद पैसो के लिए भूली अपनी मर्यादा, 

फिर भी क्यों नहीं है कोई शर्मिन्दा।


कागज़ के टुकड़ो पे धरी है शख्सियत, 

अपने दुखो से नासूर है सबकी तबियत

बातों की पोटली में बस गयी है मेहनत, 

फिर भी कोई किसीके विचारो से नहीं है सहमत।


मेरे देश में विविधता में है एकता, 

सभी धर्म और मजहब इसमें है समाता

कई वर्षो से जागरुक हुई है कितनी सभ्यता, 

फिर भी रोटी के टुकड़े के लिए फैली है अराजकता।


देखूँ एक सपना एक नौका है मझधार में, 

सभी वर्ग के लोग लगे हुए है कतार में

चारो और खुशियों की गाड़ी चले तेज रफ़्तार में, 

फिर भी मन करे इंतज़ार भगवन के अवतार में।


दोस्तों, माना की कलयुग के हर चक्र में निंदा है, 

फिर भी इस जग में प्रेरणा के श्रोत अभी जिंदा है।


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