फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है,
मुझ पे एहसान हवा करती है।
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर,
गुफ़्तगू तुझ से रहा करती है।
दिल को उस राह पे चलना ही नहीं,
जो मुझे तुझ से जुदा करती है।
ज़िन्दगी मेरी थी लेकिन अब तो,
तेरे कहने में रहा करती है।
उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख,
दिल का एहवाल कहा करती है।
मसला जब भी उठा चिराग़ों का,
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है।
