फांसी का फंदा
फांसी का फंदा
ये देश के दुश्मन
जो है
इन्सानियत के दुश्मन
ये अक्सर लड़ते हैं
कभी मजहब के नाम पर
कभी जाति के नाम पर
मंदिरों के कलश
गिराने से भी नहीं चूकते
मस्जिदों के गुंबज
तोड़ने से भी बाज नहीं आते
यहां तक कि
सिर कलम करने से भी
नहीं हिचकिचाते
क्या कहेंगे ऐसे गद्दारों को ?
ये तो हत्यारे हैं हत्यारे !
देश के
देश के बाशिंदों के !
ये क्यों भूल जाते हैं -
घर तो
इनके भी जलते हैं
मरने वालों में
इनके भी मरते हैं
फिर भी ये बाज नहीं आते
हत्यारे जो हैं
ऐसों को तो इनाम में
मिलना चाहिए
केवल
केवल फांसी का फंदा !
