पहाड़ों की एक सुबह
पहाड़ों की एक सुबह
नवप्रभात की प्रथम किरण सी
उतरी ज्यूं नभ से रश्मि प्रभा
श्यामल मेघों से घने केश
रूपसि का मुख अरविन्द शेष
कुछ अलसाये मदभरे नयन
कुछ मृग चकोर से कह गये बैन
पटपीत चुनर तिरछी चितवन
बिखराती पुष्प कदम मधुबन
यूं दिवास्वप्न की बेला में
मेरा ह्रदय चुराने आई प्रभा
उतरी नभ से वो रश्मिप्रभा।
छनछन छमछम की सुमधुर घ्वनि
नखशिख श्रंगार किये रंभा
चितचोर बड़ी है चकोर परी
चपला सी चंचल चन्द्रमुखी
चहुंओर निहार उठी मुसका
वह वैतरणी सी रश्मिप्रभा।