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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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पगड़ी

पगड़ी

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वाह पगड़ी तू भी क्या चीज है

तू हमारे आन-बान का बीज है,

तेरे लिये हम शीश कटा देते हैं

तू हमारे गौरव की दहलीज है,

तू हमको शिष्टाचार सिखाती है

तू हिंदुस्तानियों की तहजीब है,

पगड़ी तू हमारा मान-सम्मान है

तेरा बिना हिंदुस्तानी बेजान है,

तू हमारे जिस्म की नाक-जीभ है

तू हमारे आन-बान का बीज है,

सर्दी में तू ठंड से बचाती है

गर्मी में तू लू से बचाती है,

पगड़ी तू हेलमेट का द्विज है

वर्षा में तू बारिश से बचाती है,

गिरे तो चोट लगने से बचाती है

पगड़ी तू सुरक्षा का ताबीज़ है

वाह पगड़ी तू भी क्या चीज है,

पगड़ी हिंद में तेरे अनेक रूप है

इनमे मेवाड़ी का रूप अनूप है,

मान-मर्यादा की तू रखती तमीज है

हुआ है तेरा लहू से अभिषेक,

तुझमे अनेक वीरो का लहूं मौजूद है

कहते है,शीश कट जाये

पर पगड़ी न गिरने पाये,

ये प्रताप की दी हुई सीख है

वाह पगड़ी तू भी क्या चीज है।



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