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विनोद महर्षि'अप्रिय'

Inspirational

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विनोद महर्षि'अप्रिय'

Inspirational

पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ

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पेड़ लगाओ बचाओ वन

वृक्ष लगाकर बचाओ जीवन

पर कट रहे हैं हर रोज वन

बन रहे हैं विनाश के भवन।


वह जीवन जिसमें आनंद की धार नहीं

वह घर जिसमें वृक्ष कोई छायादार नहीं

वह चमन जिसमें अब फूल खुशबूदार नहीं

समझो बिन वृक्ष जीवन का आधार नहीं।


वह चमन कहां अब

वह शीतलता कहां अब

बिन वृक्ष जीवन कहां अब

इक घुटन सी है सहते अब।


जीवन बस कारोबार है अब

क्यों स्वार्थ में खो गए हम

ध्यान नहीं निज भलाई का

प्रकृति सा वह मन कहां अब।


आंखों के अंधे मत बनो

निज स्वार्थ में मत झूलो

अपराधी प्रकृति के मत बनो

प्रकृति के सहयोगी बनो।


निज स्वार्थ में गर झूमोगे

प्रकोप प्रकृति का सहोगे

समय है अभी भी चेत जाओ

चहुं दिसि अब पेड़ लगाओ।


यह पेड़ है कोटर पंछियों के

पेड़ है पूजा ऋषियों की

यह जीवन धारा है इस जग की

मत भूलो गाथा वन की।


गर हर इक पेड़ इक लगाएं

तो संपूर्ण धरा पर शीतलता छाए

जीवनदान हम सब पा जाएं

पंछी भी झूम कर चहचहाये।


सावन में घनघोर घटा छा जाए

मयूर नाचे पपीहा गाए

घटा हरियाली की झूम के आए

वातावरण सुखद बन जाए।


स्वस्थ श्वास ले लंबी उम्र पाएं

पुष्पों के झुरमुट लहराए

तितली संघ भ्रमर मंडराए

गर करें हम इतना सा काम

स्वस्थ सुखद यह हिंदुस्तान बन जाए।


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