पेड़ धरा का भूषण
पेड़ धरा का भूषण
पेड़ काट तुमने जग में
कितनों का बसेरा छीन लिया
झीलों में डाल के कूड़ा कचरा
पानी में भी विश घोल दिया
ये मूक जीव कुछ ना कहते
अपनी दुनिया में खुश रहते
ना कभी मांगते कुछ तुमसे
पर कर्म तुम्हारे सब सहते
ना चैन मिले जो जाओ कहीं
भीषण गर्मी पर छांव नहीं
पानी भी बिकता बोतल में
बहता पानी भी साफ नहीं
घुल रहा जहर हवाओं में
लेना सांस भी मुश्किल है
दोष किसी को दे हम क्या
हम सब भी इसमें शामिल हैं
कब सुधरेगा तू ए मानव
दूजे की फिक्र करेगा तू
अपने लाभ की ही खातिर
कितनों के प्राण हरेगा तू
यह फर्ज निभा लो तुम अपना
बचा लो यह पर्यावरण अपना
वादियां रंगीन फिजाएं कहीं
बनकर रह जाए ना कोई सपना
प्रण ले आज सभी मिलकर
इस जहर को रोकना होगा
हो साफ धरा पानी व हवा
सभी को वृक्ष रोपना होगा
जन्म दिवस और त्योहारों की खुशियां
इस तरह मनाए हम
देकर इस प्रकृति को जीवन
मिलकर दस पेड़ लगाए हम।