पौधे - हमारी दूसरी ज़िन्दगी।
पौधे - हमारी दूसरी ज़िन्दगी।
जी जाते है जितना दिल चाहे अपना,
मर के तो इस मिट्टी में ही दफ़न होते है,
उस मिट्टी से जनम लेती है ज़िन्दगी फिर से,
उसी मिट्टी से ही पौधे और फल होते है,
ये पौधे तो है अपनी निशानियाँ,
बीज इनके जो अपनी मिट्टी में दफ़न होती है,
जीने का सलीके सीखाती है ये मिट्टी उन्हें,
उग के हमसे बढ़ना क़ुदरत सीखा देती है,
पूछ लेते है कुछ लोग हमसे की
आखिर इसका फ़ायदा क्या है?
ज़िन्दगी मिलती है चार दिनों की
इन पौधों को महफूज़ रखने का
मतलब क्या है?
ये पेड़, पौधे ही
हमारी दूसरी ज़िन्दगी है ए दोस्त
इसीलिए तो इनका इतना
ख़याल करते है,
यही हमारी निशानियाँ
इसीलिए तो ये पौधे हम पे
ऐतबार करते है,
ये पौधे ही देते है हमें
जीने का ज़ज़्बा
जो किसी और से
नहीं मिलती,
यही तो है करिश्मा
क़ुदरत का ए दोस्त,
ऐसी ज़िन्दगी जो हर किसी को
नसीब नहीं होती।