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Sarita Kumar

Fantasy

4  

Sarita Kumar

Fantasy

पारस

पारस

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पारस हो तुम

छू लूं जो सपनों में 

तब कुंदन बन जाती हूं


खास हो तुम 

संग होकर तुम्हारे

बहुत खास बन जाती हूं 


बरसात हो तुम 

गम के बादल जब छाएं

भींग कर तृप्त हो जाती हूं 


बहार हो तुम 

दिल जब उदास हो जाएं 

देखकर पुलकित हो जाती हूं 


किरण हो तुम 

चाहे अमावस की रात हो 

मुस्कान से आलोकित हो जाती हूं


सुधा हो तुम 

बेजान-सी जिंदगी में 

पीकर ऊर्जावान हो जाती हूं


दूर हो तुम 

मगर तलब होते ही 

पाकर तुम्हें साथ हो जाती हूं


चंदन हो तुम 

माथे पर लगाकर 

सारा जग महकाती हूं 


ताज हो तुम 

सर पर चढ़ा कर 

सम्मानित हो जाती हूं ।


पारस हो तुम 

छूकर सपनों में 

कुंदन बन जाती हूं


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