ओ साथी मेरे मन के
ओ साथी मेरे मन के
ओ साथी मेरे मन के
थे प्राण जीवन के
क्यूँ छोड़कर चले गये
मेरे प्रेम विरहन के
ओ साथी मेरे मन के....
कल थे मिले हम
आज अलग हुए ऐसे
मिल के बिछड़ जाते हैं
जैसे जीवन-चरित राधा-रमन के
ओ साथी मेरे मन के....
मुँह मोड़ लिया है
रिश्ता तोड़ दिया है
पर हम तो साथी हैं
जनम-जनम के बंधन के
ओ साथी मेरे मन के....
सावन की बूंद अधूरी है
अधूरे हैं संग भीगने के ख़्वाब
लौट के आ जाओ वापस
सूने पड़े हैं झूले आँगन के
ओ साथी मेरे मन के....
तुम लौट के जब आओगे
हमे वैसा ही पाओगे
दोनों मिलकर पूर्ण होंगे
नैनों में स्वप्न है मिलन के
ओ साथी मेरे मन के....
तुम चाहें मुझसे विभक्त हो
फिर क्यूँ न अश्रु-स्वेद-रक्त हो
तुम्हें फिर भी सोचूँगी मैं
तुम गुल हो मेरे चमन के
ओ साथी मेरे मन के....