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Sonal Omar

Romance

3.8  

Sonal Omar

Romance

ओ साथी मेरे मन के

ओ साथी मेरे मन के

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ओ साथी मेरे मन के

थे प्राण जीवन के

क्यूँ छोड़कर चले गये

मेरे प्रेम विरहन के

        ओ साथी मेरे मन के....


कल थे मिले हम

आज अलग हुए ऐसे

मिल के बिछड़ जाते हैं

जैसे जीवन-चरित राधा-रमन के

        ओ साथी मेरे मन के....


मुँह मोड़ लिया है

रिश्ता तोड़ दिया है

पर हम तो साथी हैं

जनम-जनम के बंधन के

        ओ साथी मेरे मन के....


सावन की बूंद अधूरी है

अधूरे हैं संग भीगने के ख़्वाब

लौट के आ जाओ वापस

सूने पड़े हैं झूले आँगन के

        ओ साथी मेरे मन के....


तुम लौट के जब आओगे

हमे वैसा ही पाओगे

दोनों मिलकर पूर्ण होंगे

नैनों में स्वप्न है मिलन के

        ओ साथी मेरे मन के....


तुम चाहें मुझसे विभक्त हो

फिर क्यूँ न अश्रु-स्वेद-रक्त हो

तुम्हें फिर भी सोचूँगी मैं

तुम गुल हो मेरे चमन के

        ओ साथी मेरे मन के....



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