ओ मेरे जाना..!
ओ मेरे जाना..!
दस्तूर मेरे जाना तू ने मेरा कभी जाना नही
यूं ही ना पागल बनता मेरे जैसा दीवाना कोई,
ना दिया इल्म किसी अल्फ़ाज का
क्या तू भूल गया की हूं मे तेरी कोई।
पता नही किस बात का गम हे मुझे
चुभती हर एक याद, कैसे भूलूं उसे
दिल की दिवार सुनी तू करगया
ना जाने कम्बख्त क्यों दूरी कर गया।
चोट लगी हे दिल पर,
पर ना हे घाव कहीं
कैसे दिखेंगे बाहर
अंदर की हे बात यही।
ना हूं पागल मैं ना गुमराह कहीं
याद मे अपनी छोड़कर चला गया है तू ही,
ना बीतेगा ये गम कहीं, ना ये बाते कही
सिर्फ उसकी यादों मे कट रही है राते कई।

