नज़र
नज़र
नज़र न आया करो हमें तुम…
न ख़्वाब में, न हक़ीकत में
नज़र जो कभी आ गए तो…
तुमसे नज़र चुराए हम कैसे ?
रोक नहीं सकते हम फिर…
अपनी इन्हीं दो नज़रों को
तुम्हें नज़र में भर लेंगे, तुम भी
हमसे नज़रें फेरोगे कैसे ?
नज़र-नज़र से टकरा गई तो...
हमारी नज़र ही लग जाएगी
हज़ार कोशिश फिर तुम कर लो...
नज़रों से हमारी दूर रहोगे कैसे ?
हमारी नज़रें झुक जाती है…
खता न समझना इनकी तुम
इन नज़रों में बसा लिया है…
और नज़र कोई आए फिर कैसे ?

