आजकल का प्यार
आजकल का प्यार
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क्यों आते हो याद तुम इतना?
जब तुमसे कोई रिश्ता ही नहीं...
क्यों तड़पाते हो तुम इतना?
जब तुमसे हमारा नाता ही नहीं...
क्यों वादे तुम करते हो?
जब पूरा उसे कर सकते नहीं…
क्यों मीठी बातों से बहकाते हो ?
जब तुमसे कोई उम्मीद ही नहीं...
क्यों दिल की धड़कनें बढ़ाते हो?
जब इस में तुम्हारा बसेरा ही नहीं...
क्यों झूठी आस जगाते हो?
जिसे पूरा करना सीखा ही नहीं...
क्यों सपने सजाते हो आंखों में?
जब इन आंखों में नींद ही नहीं…
फिर क्यों करते हो प्यार इतना हमें?
जबकि अभी हम तुम्हारे नहीं...
क्यों हाथ मांगते हो तुम मेरा?
जब इसे थामने का मौका ही नहीं…
क्यों साथ चाहते हो तुम मेरा?
जब हम आपके साथी ही नहीं…
रोक लो खुद को और मुझे तुम
रिश्ता ये ग़लत है, सही नहीं...
ओ ‘टीवी के सीरियल’ मत बांधों मुझे
बस कल्पना हो तुम... सच नहीं…!

