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Akanksha Gupta

Abstract Drama

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Akanksha Gupta

Abstract Drama

नज़र में

नज़र में

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मैं ही नहीं हूँ यहाँ किसी की नज़र में

या मैं ही छुप रही हूँ दुनिया की नज़र से

कुछ एहसास अनकहे से दिल के

ठहरे है आँखों में एक सवाल बनके


नज़र में नहीं हैं ये दबी सिसकियाँ

या हँसी में इनको छुपा रही हूँ मैं

नहीं है इल्म मुझे इस बात का

बेवजह गम क्यों पी रही हूँ मैं


ना जाने क्या वजह है इस तन्हाई की

जो बनकर साथी साथ चलती है यह

क्यों तड़पती है ज़िंदगी बेबस सी

ना जाने मुझसे क्या चाहती है यह


अपने आप से रूठी हुई आजकल

अनसुलझी पहेली बनी क्यो ये ज़िंदगी

ज़िंदा न बना है ये पैकर एक अरसे से

बेनज़र सा मुझको ये बाँधे हुए।


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