नया सवेरा
नया सवेरा
मुड़कर जब देखता हूँ पीछे मैं,
जानें कितने लोग पीछे छूट गये,
कितनी गलियां पीछे छूट गयीं,
कितनी सड़कें नजरों से गुजर गयी।
जब देखा मुड़कर पीछे मैंने,
जानें कितने घर छूट गये।
जिन गलियों में बीता बचपन अपना,
आज बेगाने से लगने लगे।
खेला था संग सबके जिस आँगन में,
आज बहुत वो याद आने लगे।
दिल करता है, फिर चला जाऊँ,
आज उन्हीं राहों पर,
सीखा था मैंने जहाँ पर चलना,
दादाजी का हाथ पकड़कर।
सबसे मिलूँ मैं, गले लगाऊँ,
जो कुछ भूला-बिसरा था मैं,
कान पकड़कर माफी माँगू,
नई सुबह के साथ मैं,
नया सवेरा जीवन में लाऊँ।
सबके साथ मिल-जुलकर
हर्षोल्लास की लहर फैलाऊँ।