नया साल
नया साल
हर बार की तरह ये साल भी निकल गया
कुछ अच्छे कुछ बुरे अनुभव दे गया।
हर वक़्त कुछ ना कुछ सिखाना ही चाहा इसने
कभी मैं ना समझी और कभी ये,समझा ना सका मुझे।
अपने-पराये की उधड़बुन में उलझी रही ये दुनिया
कभी खुदको परखे तो असलियत जान पाए ये।
हमेशा दूसरो की कमीं देखी
कभी खुदका जायज़ा तो लेकर देख।
ख़ुद-ब-ख़ुद पहुँच जाएगा निर्णय पर
जीवन का असली महत्व तो जानकर देख।
कुछ छूट गये हाथो से रिश्ते
कुछ के बदल गये मायने ज़िंदगी के।
मैं परास्त सी होकर खड़ी रह गयी
हर एक इल्ज़ाम अपने सर लेकर तो देख।
बहुत कुछ चाहा हैं इस ज़िंदगी में
कभीं कंधों पर जिम्मेदारी लेकर तो देख।
दर-किनार रह जाती है सारी ख्वाहिशें
दूसरों के इशारो पर जीकर तो देख।
ब-मुश्किल हैं एक औरत का जीवन जीना
स्त्री का कोई एक पल जीकर तो देख।
कहने से क्या हो जायेगा हर बार की तरह
ये नया भी पुराना हो जाएगा॥
कोशिश रहेगी ये साल बदल सकु वरना
हर बार की तरह ये साल भी निकल जाएगा॥