नवरात्रि :माँ के रूप..!
नवरात्रि :माँ के रूप..!
सज गए माँ के दरबार
हो रहे मन हर्षित अपार
हार श्रृंगार सजा कर माँ को
माँ दुर्गे करो भक्ति हमारी स्वीकार।
दिवस प्रथम:
प्रथम शैलपुत्री माँ दुर्गा
सौम्यरूप श्वेत वस्त्र धारण करे
शिव वाहन वृषभ पर आरूढ़
रिद्धि सिद्धि हमें प्रदान करे।
दिवस द्वितीय:
ब्रह्मचारिणी रूप में माँ दुर्गे
तुझको बारंबार प्रणाम
तप, त्याग, बैराग्य, संयम दे
बन जाएं मेरे बिगड़े काम।
दिवस तृतीया:
नवरात्रि के तृतीया दिवस
माँ चन्द्रघंटा का चमके स्वर्ण शरीर
दसों हाथ अस्त्र शस्त्र विराजे
दुःख में हरे भक्तन की पीर।
दिवस चतुर्थ:
आदि स्वरुपा आदिशक्ति कुष्मांडा के
शरण में जो भक्त आ जाए
रोग शोक मिटे सारे सभी उसके
यश, बल आरोग्य में वृद्धि पाए।
दिवस पंचम:
जगत जननी माँ दुर्गे
पाँचवें दिन स्कंदमाता का रूप धरे
जो साधक करे स्तुति माँ के चरणों में
दुःख दूर कर माँ मोक्ष के द्वार प्रशस्त करे।
दिवस षष्ट:
छटा दिन शारदीय नवरात्रि का
जो सच्चे मन से ध्यान करे
उसको सुखमय गृहस्थ जीवन
माँ कात्यायनी प्रदान करे।
दिवस सप्तम:
सौम्य स्वरूपा माँ दुर्गा जी
रण में कालरात्रि रूप धरे
मनवांछित फल देती भक्तों को
भक्त तेरी जय जयकार करे।
दिवस अष्टम:
चार भुजाएँ वाहन वृषभ
नमो नमो देवी महा गौरी
हे! गौर वर्ण अमोघ फलदायिनी
हम उगाएं हरियाली जौ की।
दिवस नवम्:
हे! दुर्गे माँ, हे! दुर्गे सिद्धिदात्री
हर भय से तुम हमको मुक्त करो
हम सब मिल पूजन तेरा ध्यान करें
शुभता के फल से हमें तृप्त करो।
"जय माँ दुर्गे"