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संजय असवाल

Abstract Inspirational

4.7  

संजय असवाल

Abstract Inspirational

नवरात्रि :माँ के रूप..!

नवरात्रि :माँ के रूप..!

1 min
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सज गए माँ के दरबार

हो रहे मन हर्षित अपार

हार श्रृंगार सजा कर माँ को

माँ दुर्गे करो भक्ति हमारी स्वीकार। 


दिवस प्रथम:

प्रथम शैलपुत्री माँ दुर्गा

सौम्यरूप श्वेत वस्त्र धारण करे

शिव वाहन वृषभ पर आरूढ़

रिद्धि सिद्धि हमें प्रदान करे। 


दिवस द्वितीय:

ब्रह्मचारिणी रूप में माँ दुर्गे

तुझको बारंबार प्रणाम

तप, त्याग, बैराग्य, संयम दे

बन जाएं मेरे बिगड़े काम। 


दिवस तृतीया:

नवरात्रि के तृतीया दिवस

माँ चन्द्रघंटा का चमके स्वर्ण शरीर

दसों हाथ अस्त्र शस्त्र विराजे

दुःख में हरे भक्तन की पीर। 


दिवस चतुर्थ:

आदि स्वरुपा आदिशक्ति कुष्मांडा के

शरण में जो भक्त आ जाए

रोग शोक मिटे सारे सभी उसके

यश, बल आरोग्य में वृद्धि पाए। 


दिवस पंचम:

जगत जननी माँ दुर्गे

पाँचवें दिन स्कंदमाता का रूप धरे

जो साधक करे स्तुति माँ के चरणों में

दुःख दूर कर माँ मोक्ष के द्वार प्रशस्त करे। 


दिवस षष्ट:

छटा दिन शारदीय नवरात्रि का

जो सच्चे मन से ध्यान करे

उसको सुखमय गृहस्थ जीवन

माँ कात्यायनी प्रदान करे। 


दिवस सप्तम:

सौम्य स्वरूपा माँ दुर्गा जी

रण में कालरात्रि रूप धरे

मनवांछित फल देती भक्तों को

भक्त तेरी जय जयकार करे। 


दिवस अष्टम:

चार भुजाएँ वाहन वृषभ

नमो नमो देवी महा गौरी

हे! गौर वर्ण अमोघ फलदायिनी

हम उगाएं हरियाली जौ की। 


दिवस नवम्:

हे! दुर्गे माँ, हे! दुर्गे सिद्धिदात्री

हर भय से तुम हमको मुक्त करो

हम सब मिल पूजन तेरा ध्यान करें

शुभता के फल से हमें तृप्त करो। 


"जय माँ दुर्गे"


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