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Savita Gupta

Abstract

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Savita Gupta

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नवरात्रि-कैसा उत्सव

नवरात्रि-कैसा उत्सव

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कैसा अजीब ये अनुष्ठान है 

जन जन में डर का स्थान है

रक्त बीज सा फैला ज़हर 

उत्सव का ना कोई उत्साह है।


कैसी घड़ी ये आई माँ 

ना गरबा ना डांडिया माँ 

गुप चुप पूजन हो रहा 

कैसे अर्पण करूँ पुष्पांजलि माँ ।


ढाक बाजा की ध्वनि नहीं 

आरती की धूप नहीं 

ना गीत का झंकार है

ना मेला ना उल्लास है।


पंडालों की चकाचौंध नहीं 

मेला का रौनक नहीं 

सूना माँ का दरबार है

त्योहार का उमंग नहीं ।


भोग तुझे कैसे लगाऊँ 

लाल चुनर कैसे पहनाऊँ 

सिंदूर खेला, भरूँ कैसे खोइचा माँ 

कैसे माँ को मनाऊँ ।


अगले बरस ना आना माँ ऐसे

भर कलश लाना ख़ुशी फिर से

भक्तों को देना देवी तू दर्शन 

आशीष लुटाना दोनों कर से।



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