"नव सपने"
"नव सपने"
वो गरीब मासूम बच्चे की तकती नज़रें
सवाल पूछ रही थी,मुझे न जाने कितने
शब्द लबों तक आकर जैसे रुक से गये
क्या गरीब होने पर दुःख मिलते,इतने
कैसे उस मासूम की मे शिक्षा पूरी करूं ?
कैसे उस मासूम बच्चे की में पेटपूर्ति करूं ?
भीतर विचार चल रहे थे,मेरे बहुत घने
क्या गरीब बच्चे नही होते है,ज़रा अपने?
बोली वो मासूम बच्ची कुछ ले,लो बाबूजी
मैंने पैसे दिया,बोली भीख न लूंगी बाबूजी
बातें सुन,हतप्रभ हुआ,सांप सूंघ गया मुझे
स्वाभिमान देख,आंख से आंसू निकले घने
पूंछ बैठा,बेटा तू पाठशाला क्यों न जाती,
तुझसी होनहार बेटियां के बहुत कम है,पन्ने
वो बोली घर पर मां बीमार,पिता लाचार है,
औऱ छोटे भाई की स्कूल फीस देनी है,मुझे
सुन गला भर आया,लोग दुःखी है,कितने
एक मेरे बच्चे है,व्यर्थ की बर्बादी करते है
अति लाड़-प्यार में,क्या संस्कार दिए हमने
अब से ठान लिया,गरीब बच्चों को पढ़ाना
चाहे साखी की जेब से पैसे लगे कितने
हर बच्चे का देश में पढ़ना बहुत जरूरी है,
तभी भारत देश की उन्नति होगी पूरी है,
इसीके साथ,उसकी चीजे खरीद ली मैने
साथ अच्छे शिक्षकों का दल बनाया मैंने
जो गरीब,अनाथ बच्चों की हर मदद करते
अब से चल पड़ा,नई डगर,नई रोशनी ओर
हृदय में जोश,आंखों में लिये नव सपने।