नूतन निश्चय
नूतन निश्चय
ज़िंदगी दो पल की एक
अनोखी दास्तांं,
ले लेगी तुझसे तेरा ही वास्ता,
ग़म तो बहुत है यहाँ,
फिर भी रुकता नहीं ,
उम्मीदें तो बहू है सबसे,
लेकिन किसी के आगे झुकता नहीं ॥
लौट कर जब आता हूँ
अपने दर पर,
नाम मात्र की हस्ती
होती है कर पर,
लोग कुछ कहते है,
पर मैं सुनता नहीं ,
अपनी धुन में चलता हूँ,
पर थमता नहीं ॥
महत्वाकांक्षाओं का ऐसा
सैलाब है सर पर,
नहीं हटने देती कर्मपथ से
डर कर,
उम्मीदें टूट जाती है,
फिर भी हारता नहीं ,
अपने रास्ते पर चलकर,
पीछे हटता नहीं ॥
अकेला जब होता है मन,
शुन्य में कर लेता हूँ भ्रमण,
दो-चार बातें सुन लेता हूँ,
लेकिन बोलता नहीं ,
प्रेम -भाव किसी का मेरे साथ
तोलता नहीं ॥
अब करता हूँ एक नूतन निश्चय मैं,
तोड़ता हूँ सारे माया बंधन मैं,
अपना इतिहास लिखता खुद,
लिखवाता नहीं,
जयजयकार अपनी करता खुद
करवाता नहीं ॥