नूर खुदा का
नूर खुदा का


इक चाँद धीरे -धीरे कहीं गहरे उतर रहा है मुझमे ,
इक वक़्त का ठहरा दरिया सिमट रहा है मुझमे ,
यूँ छलक रही है चाँदनी मेरे हर इक रोम -रोम में ,
उस ख़ुदा का नूर बिखर रहा हो जैसे ,बेखबर सा मुझमें ।।
इक चाँद धीरे -धीरे कहीं गहरे उतर रहा है मुझमे ,
इक वक़्त का ठहरा दरिया सिमट रहा है मुझमे ,
यूँ छलक रही है चाँदनी मेरे हर इक रोम -रोम में ,
उस ख़ुदा का नूर बिखर रहा हो जैसे ,बेखबर सा मुझमें ।।