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Renuka Chugh Middha

Abstract

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Renuka Chugh Middha

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नूर खुदा का

नूर खुदा का

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इक चाँद धीरे -धीरे कहीं गहरे उतर रहा है मुझमे ,


इक वक़्त का ठहरा दरिया सिमट रहा है मुझमे , 


यूँ छलक रही है चाँदनी मेरे हर इक रोम -रोम में , 


उस ख़ुदा का नूर बिखर रहा हो जैसे ,बेखबर सा मुझमें ।।



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