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Rajeshwar Mandal

Abstract

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Rajeshwar Mandal

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नसीहत

नसीहत

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चलो अच्छा हुआ

कि समय रहते

फासले आ गये

हमारे दरमयां

वरना लोग 

खो कर खुद को

ढुंढते मुझको

और खोजते 

उन रिश्तों का अर्थ

जो परिभाषित न हुआ था


नाम विहीन उन रिश्तों की

गरीमा को बचाया जाए

गुंजाइश रहे इतनी 

गर मिले कभी राह चलते

तो नज़रें न झुकाया जाए


यादों को

दिलों की संदूकों में

संजोया जाए

फासले रहें

अपनी जगह

पर रिश्तों को 

ताउम्र निभाया जाए

हो सके तो

इसलोक से ईशलोक तक


न कोई शिकवा

न कोई शिकायत

आत्मसात करें इसे

समझ कर बस नसीहत।


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