नसीहत
नसीहत
चलो अच्छा हुआ
कि समय रहते
फासले आ गये
हमारे दरमयां
वरना लोग
खो कर खुद को
ढुंढते मुझको
और खोजते
उन रिश्तों का अर्थ
जो परिभाषित न हुआ था
नाम विहीन उन रिश्तों की
गरीमा को बचाया जाए
गुंजाइश रहे इतनी
गर मिले कभी राह चलते
तो नज़रें न झुकाया जाए
यादों को
दिलों की संदूकों में
संजोया जाए
फासले रहें
अपनी जगह
पर रिश्तों को
ताउम्र निभाया जाए
हो सके तो
इसलोक से ईशलोक तक
न कोई शिकवा
न कोई शिकायत
आत्मसात करें इसे
समझ कर बस नसीहत।
