नशे की लत
नशे की लत
नशे की लत है बड़ी ख़राब ,गुटखा, खैनी हो या शराब।
बुद्धि- विवेक सब की है हर लेती, चाहे गरीब हो या हो नवाब।।
पढ़े- लिखे जो इसको हैं अपनाते, इज्जत पल भर में होती नीलाम।
अनपढ़ का क्या दोष गुसाईं, लेते इसका ही अमृत नाम।
लिख रहा हूँ इस मकसद से, इसने किया सबका जीना हराम।
घर-घर में यह ऐसे फैला, कर दी अपनी हस्ती बदनाम।।
कार्य न होते कोई भी अच्छे, तब भी चलता है सीना तान।
मदहोश हुआ वह सब कुछ करता, जिससे वह खुद है अनजान।।
पता नहीं कितने बर्बाद हो गए, फिर भी ना करते इसका कोई निदान।
जान-बूझकर जो है इसको करते, तुलना उसकी पशु-वत समान।।
ठोकर खाकर फिर भी न संभलता, ईश्वर से है वह अनजान।
अप्रत्यक्ष रूप में मौका वह देते, क्यों चुनते हो तुम श्मशान।।
गलतियाँ हर इंसान से होतीं, मिटा दो इसका नामो-निशान।
" नीरज" की है करबद्ध प्रार्थना, "नशा" को ना समझो अपनी शान।।