नृत्यांगना
नृत्यांगना
देखो इस नृत्यांगना को,
जिसका हर अंग नृत्य कर रहा है।
इसके नृत्य में वह सुरूर है,
जो ना तो छुप रहा है और ना ही बयां हो पा रहा है।
लगता है शायद सब कुछ लुट चुका है,
या कुछ लुटने की आशंका है।
यह हुस्न की मलिका एक पैर पर थिरक रही है,
ज़मीं की तरह अपने ज़ज्बातों का बोझ उठाए।
बिना किसी सरगम के धड़कन के घुंघरूँ बज उठे,
इसकी मदहोशी में दफन है खामोशी के कई राज़।
धीरे-धीरे एक औरत परिवर्तित हो जाती है कलाकार में,
उतर जाती है जो स्टेज पर अभिनय के लिए।
जब औरत के थिरकते हैं क़दम तो उठते हैं कई सवाल,
कितने अभिनय निभा रही है वो एक साथ।
घर के कोने-कोने में बिखरी हुई,
एक पत्नी, एक बहू और एक माँ।
तालियों की गड़गड़ाहट और मनचलों की छिछोरी टिप्पणियों में,
ढूँढ़ते हुए अपने रिश्तों को एक औरत महसूस करती है।
अपनो के हाथों ठगी-सी, अधूरी और बिकी-बिकी-सी,
अपना ही जनाजा लिए बेआबरू होकर थिरक रही है।