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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

नर्मदा के प्रति तिलस्मपूर्ण"

नर्मदा के प्रति तिलस्मपूर्ण"

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मोहित कर रही किस कामना-गम पर

युवता की वह पहली गुहार

स्वयम् को भिगो रही तृष्णा-वल्लरी

किस कलरव की मधुर तंकार। 


टूट चला है यह किस तीर पर

उत्कंठित नेह का पारावार

किसकी खिली चमक चितवन पर

होता अब उन्मुक्त अभिसार। 


व्यर्थ घूम रहे किसके सुलोचन नयन

कौन बैठी डगर में हो निराश

घातक निर्जल मृगतृषा की सी

निहार रही अनमनी आकाश। 


कंपित कर रक्खा है वेलों को किसने

अमंद-पुंगों के अवछंग नृशंस

लग्न निष्फल अभिलाषाओं से

आक्रंद-म्लान मंजुल का घोष। 


अब लिये बढ़ा किसकी करुणा

उन अँखियों का बिरस-अवसाद

आज वह किस गुमनामी में छिपा

नील गगन का मतंग-प्रमाद। 


 गम-पगडंडी, तंकार-झनकना,

अमंद-पेड़, मतंग-बादल। 



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