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chandraprabha kumar

Action Children

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chandraprabha kumar

Action Children

नन्हीं कली

नन्हीं कली

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आईं तुम मेरी बिटिया की बिटिया

सुन्दर सी नन्हीं परी

जो देखता चकित रह जाता,

तुम्हारी कोमलता 

तुम्हारा भोलापन

सबको आकर्षित करता। 


पर तुम्हारा बचपन

न जाने कहॉं गुम हो गया,

न कोई शरारत

न कोई खेल,

इतनी अकेली

तुम कैसे हो गई। 


न तुम कूदकर उतरीं

न तुम ख़ुशी से उछलीं,

न बगीचे में घूमी

न बारिश में भीगीं 

काग़ज़ की नाव भी

नहीं बनाई न तैराईं। 


पेड़ पर से नारंगी नहीं चुनीं

अमरूद अपने से नहीं तोड़े,

अपने से संतरे छीलकर नहीं लिये

फूल तक नहीं तोड़े,

फल तो दूर की बात है

कोई शरारत नहीं की। 


अकेली ही बड़ी होती गईं

न कोई दोस्त 

न कहीं आना जाना,

मॉं अपनी नौकरी में व्यस्त ,

तुम घर पर अकेली 

स्कूल में भी अकेली। 


कोई साथ खेलने को नहीं 

कोई मन की बात कहने को नहीं

खुली हवा में कभी सॉंस नहीं ली

जब तब मॉं की डॉंट पड़ी

सहमी सहमी रहीं

और दिन बीतते गये। 


तुम्हारा बचपन ऐसे ही

चला गया ,

अब वह नहीं लौटेगा,

तुमने तो जाना भी न था

बचपन क्या है

ऐसे ही बड़ी हो गईं। 


यह आज के बालकों की व्यथा

कंधे पर किताबों का बोझ

न बेफ़िक्री न खेलकूद

न कहीं आना न जाना

न खेलने की जगह

ज़माना ही पलट गया। 


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