नन्ही कली
नन्ही कली
हे प्रभु !
क्या मैंने कोई गलती की थी,
या था मैंने कोई पाप किया ।
मेरे अन्तर्मन की तह पर फिर,
क्यूँ तूने ये आघात किया ।
अभी तो उड़ना सीखा ही था बस,
पल भर मे ही मेरे पंख क़तर दिये,
बाबा ने सपनों को बुनना शुरू किया ही था बस ,
क्यू तूने माँ की उम्मीदों का विनाश किया ।
कभी लूटी रावण के हाथों,
तो कभी दुशासन ने तिरस्कार किया ।
क्या यही नियति थी मेरी,
जो लड़की कुल का अभिशाप लिया ।
कभी कहते हो अबला हूँ मैं,
कभी मातृ शक्ति का आश्वासन दिया ।
मेरे आँसुओं के सिंहासन पर,
सदैव पुरुष वर्ग ने राज किया ।।
