नन्हे पौधे की आवाज
नन्हे पौधे की आवाज
एक नन्हा पौधा, जब वसुधा से निकलता है,
नया जीवन,नई दुनिया में आता है;
घोर संघर्ष करता है,अपना अस्तित्व बनाता है।
कभी नन्हा बीज था,इस धरा के अंदर कैद था,
मेघों ने अपना रवैया बदला,
काली घटा छाई,
वर्षा हुई,ऋतुओं ने अपना रुख मोड़ा।
बीज आमोद हुआ,उसकी काया शीतल हुई,
अंकुरित होकर,
धरा को चीरकर आजाद हुआ;
सूरज की रस्मियों से ऊर्जा मिली।
ना जाने कितनी मेहनत से वो बाहर आता है,
कालचक्र के चलने से बढ़ने लगता है;
एक नन्हा पौधा जब वसुधा से निकलता है।
चहुँओर तृणों के उगने से,
मानो धरा ने हरी चुनर ओड़ ली है,
भोर होने से जब ओस छा गई तो;
लगता तृणों ने मोतियों से श्रृंगार कर लिया है।
उसको हर रोज एक नया संघर्ष करना पड़ता है,
कभी तपती धूप का सामना;
तो कभी बारिश के पानी से लड़ना,
ऋतुएं निकलती हैं,समय निकलता है;
बढ़ता है वो,नई पत्तियां,नयी डालियाँ निकलती हैं;
वो सीख देता है इंसान को;
कैसे तपती धूप में रोज जलता है।
तेज तूफानों में भी अडिग रहता है,
धरा को चीरने वाली वर्षा में भी खड़ा रहता है,
एक नन्हा पौधा, जब वसुधा से निकलता है;
नया जीवन,नई दुनिया में आता है,
संघर्ष करता है,अपना अस्तित्व बनाता है।
सांझ होने पर शीतलता का अनुभव करता है,
जो कभी किसी का बुरा ना किया;
आज वहीं बड़ा होकर हर दिन लड़ता है।
जिसने किये ढेरों उपकार जिन पर,
आज वही उसके दुश्मन बन गये;
हर पल जिसने दिए हमें फल सारे,
आज वही इंसान उसको बेरहमी से पत्थर मारे।
उसकी मुसीबतों को भला कौन समझ सकता है,
वह मूक है, दर्द की दास्तां कह नहीं सकता है।
बिलखता है,कराहता है,पुकारता है;
फिर भी उसी इंसान पर उपकार करता है।
एक नन्हा पौधा, जब वसुधा से निकलता है,
नया जीवन,नई दुनिया में आता है;
घोर संघर्ष करता है,अपना अस्तित्व बनाता है।