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Rajiv Jiya Kumar

Abstract

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Rajiv Jiya Kumar

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नजर

नजर

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नज़र नज़र की बात है

नज़र मिली नज़र से

नज़र के कायल हुए 

नज़र इनायत हुई 

नज़र से घायल हुए।।

नज़र नज़र में

नज़र रगो में पेवश्त हुई 

नज़र नज़र मेें बस

जां नजर उनको करी

ताउम्र ताकि नज़र 

से उन न कभी बरी।।

नज़र नज़र को सदके

नज़र का सलाम 

हुस्नं-ए-नज़र नज़र का ईक पैगाम 

नज़र ने नज़र नज़र से छिप 

नज़र को इस चुना

नज़र को नज़र में सजा

नज़र नज़र को

नादां दिले-नजर का 

नजर से ईक है पैगाम।।

नजर ने नजर से

इन नजरों को चुना

नजर ने नजर को

नजर में बसा

स्वप्निल नज्म को गुन गुन कर बुना।।

नजर को नजर की

नज़र को नज़र की 

नज़र लगे न कही

नज़र की रहबर 

यह खैर रखना,

नज़र से अलग कर

कभी गैर न गिनना।।

        


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