नज़्म
नज़्म
रास्ते बदल गये
जिंदगी के मेलें हैं
दिल के कोने में
हम आज भी अकेले हैं
फासले किये नहीं
फिर भी हो ही जाते हैं
फासलों के दरमियाँ
हम आज भी अकेले हैं
न ही सिकवा था कभी
न ही अब सिकायत है
दर्द में पले बढ़े
ग़म के अब फफोले हैं
आंसुओं ने लिख दिया
दर्द के झमेले हैं
वरना इन झमेलों में
हम आज भी अकेले हैं
तेरे घर भी मेले हैं
मेरे घर भी मेले हैं
तू है सुर्ख जोडों में
हम तुर्बत में अकेले हैं।