निशा
निशा
सांवली शर्मीली नार,
निकलती दिन ढलने बाद।
निकलती तू धीरे धीरे,
बादलों में अपना चेहरा छुपा के।
लहराती हुई आँचल धीरे धीरे,
ढकती मोहिनी सुरत हौले हौले।
टीमटीमाते तारे आशिक है सारे,
कई जल मरते हैं, तेरी चाहत में बेचारे।
तुझे पाने कि ख्वाहिश में,
चंदा बदलता अपनी कलाएं,
तेरे विरह में वह अपना तन खोए,
पा के तुझे फुला न समाए।
तेरे रुप की क्या तारीफ करूं,
तेरी सुरत है मोहिनी-
देख के तुझे सारा जग सोये,
लेकिन-
तेरे आशिक सारे जल मरते।
जब तू छिप जाती,
तब आता दिन
आशिक तेरे तुझे ढूंढने में-
न जाने कहां खो जाते।