नई कविता
नई कविता
माँ !
क्या तुम भी
सो गई थी
सुभद्रा की तरह
जब बाबा
सीखा रहे थे तुम्हें
जीवन का
चक्रव्यूह तोड़ना
क्योंकि मैं भी
जीवन कुरुक्षेत्र के
चक्रव्यूह में
फंस जाता हूँ
बाहर नहीं निकल पाता
अभिमन्यु की तरह
इस अधूरी विद्या से
बहुत कष्ट झेला था
माँ अभिमन्यु ने
मुझे भी तो
दू:शासनों दुर्योधनों
और अनगिनत
शकुनियों ने
अधमरा कर रखा है
जीवन कुरुक्षेत्र में
क्यों सो गयी थी माँ
कैसे बताऊं तुम्हें
कितना मुश्किल होता है
मर मर कर जीना
जीवन के कुरु क्षेत्र में
हजारों कौरवों के बीच
