गुरू
गुरू
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मै गुरु हूँ पर द्रोण नहीं कि
अंगूठा कटवा लूँ
गुरु दक्षिणा में
किसी भील बालक का
मै जानता हूँ
भील के अंगूठे की अहमियत।
मै गुरु हूँ पर द्रोण नहीं कि
उपेक्षा करूँ
किसी प्रतिभा की
मै जानता हूँ
उपेक्षित प्रतिभाओ
को मिला लेता है दुश्मन
अपने खेमे में ,देकर अच्छी कीमत।
मै गुरु हूँ पर द्रोण नहीं कि
अपनी आँखें मूंद लूँ
जब बहु-बेटी
कि जा रही हो निर्वस्त्र
मै जानता हूँ
क्या होती है ,बहु -बेटी की अस्मत।
