चाँद पर चंद नई कवितायें
चाँद पर चंद नई कवितायें
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चाँद गिर पड़ा
जमीं पर
और वर्षा थम गई
आसमाँ में
चाँद लटकता कहाँ
और वर्षा को
आमंत्रित करता कौन
पेड़ ही नही था
जमीं पर
......................
दूर पेड़ पर लटके
अर्ध चाँद को
देखकर
फूटपाथ पर सोई माँ को
भूखे बच्चे ने जगाया
और बोला " माँ देखो "
मकई की आधी रोटी
माँ बोली सो जा बेटा
चाँद रोटी नही होता
..........................
चाँद उपगृह है
पृथ्वी का
तुम्हारे मेरे और
वैज्ञानिकों के लिये
बच्चों के लिये तो मामा ही है
फिर चाहे बच्चे
मेरे हो , तुम्हारे हो
या वैज्ञानिकों के।
