निभाएं मानवीय परंपराएं
निभाएं मानवीय परंपराएं
मन तो रहता ही है सदा युवा,
चिर युवा रह हम नया जग बनाएं।
तोड़ दें बेड़ियां भेद जो हैं बनातीं,
शुरू कर निभाएं मानवीय परंपराएं।
नये विचारों का सदा विरोधी,
रहा है ही यह जड़ संसार।
ईसा सुकरात आदि ने भोगा,
देकर के कुछ नये विचार।
शुभ परिवर्तन के बनें हम वाहक,
भले शूल पथ में हों विविध यातनाएं।
मन तो रहता ही है सदा युवा,
चिर युवा रह हम नया जग बनाएं।
तोड़ दें बेड़ियां भेद जो हैं बनातीं,
शुरू कर निभाएं मानवीय परंपराएं।
रहे देव दानव सदा ही जगत में,
आज भी हैं और ये सदा ही रहेंगे।
सतयुग में इनके अलग जग हैं होते,
त्रेता- द्वापर में एक धरा- कुल में मिलेंगे।
कलियुग में देव और दानवों को,
सारे मनुज एक तन में ही पाएं।
मन तो रहता ही है सदा युवा,
चिर युवा रह हम नया जग बनाएं।
तोड़ दें बेड़ियां भेद जो हैं बनातीं,
शुरू कर निभाएं मानवीय परंपराएं।
आर्यावर्त की पावन धरा पर आज,
कुछ परिवर्तन हो रहा है दृष्टिगोचर ।
कीमत चुकानी होती है हर प्राप्ति की,
पाते हैं कुछ भी सदा कुछ ही खोकर।
प्रभु शक्ति हमको कृपा कर यह दीजै,
अशुभ सारा खोकर पाएं शुभ परंपराएं।
मन तो रहता ही है सदा युवा,
चिर युवा रह हम नया जग बनाएं।
तोड़ दें बेड़ियां भेद जो हैं बनातीं,
शुरू कर निभाएं मानवीय परंपराएं।
