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Saurabh Kumar

Abstract

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Saurabh Kumar

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नहीं लौट के वापस आना है

नहीं लौट के वापस आना है

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ये रिश्ता तुम्हें बचाना है

हर हाल में तुम्हें निभाना है

जीना हो या मर जाना हो

नहीं लौट के वापस आना है।


जब छोर दिया चौखट तूने

गयी जहां वही नया ठिकाना है

बेदम गर तुम हो भी जाओ


हर गम घुट-घुटकर पी जाओ

तुम्हें सांस में सांस फिर लाना है

पर नहीं लौट के वापस आना है।


वो देव समान तो स्वामी है

और तुम दासी उन्हीं चरणों की

नगर-नगर हम विचरे थे

तब खोज की इन वर्णों की।


जो है वही तुम्हें अपनाना है

देखो देख रहा ये ज़माना है

जीना हो या मर जाना हो

नहीं लौट के वापस आना है।


जब चोटिल ह्रदय हो आघातों से

कुछ नीम सी कड़वी बातों से

अमृत वाणी सम धारण करना

निभाता यही दस्तूर ज़माना है।


जीना हो या मर जाना हो

नहीं लौट के वापस आना है।

चाहे निश: दिन झेलो तमस की बेला

पर जाओ बहुत ही तनहा अकेला


व्याकुल मन को धीर धराना है

पगली हो ! क्या पछताना है ?

कहती हो लौट के वापस आना है।


अंत-अंत बने संत रहो

जीवन मंत्र यही, तुम अनंत कहो

विपदा तो अति प्रिय सखी मेरी

कहीं नहीं साथ छोर के जाना है।


जीना हो या मर जाना हो

मुझे नहीं लौट के वापस आना है

नहीं लौट के वापस आना है।


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